Ode to the Ghazal maestro-Jagajit Singh
बह गया वोह कगाज़ की कश्ती की तरह, गीतों से दिल को छू के.
जब दिन आ गएँ शबाब के, ओढ़े कफ़न चल दिए.
होठों से छू के, हर गीत जो अमर कर दिए.
मुस्कुरा के गम छुपाने का, तरकीब सिखा गएँ.
सितारा जो सो गया, परेशान रात साड़ी है.
कुछ मीठी यादें और वोह दर्द भरी आवाज़, हमारे लिए छोर गएँ.
ना चिट्ठी ना कोई सन्देश, जाने कौन सा है वोह देश
बाबूल की नैहर चोर के, है कहाँ तुम चलें गएँ?
फिजां में बिखर गया, खुसबू की तरह बन के.
बदन बिना, चेहरा बिना, सिर्फ यादों में बसे रह गएँ!
शफक, धनुक, महताब घटाएं, तारे, नागने, बिजली, फूल.
हर चीज़ याद करेगा तुम्हे, तुम हमारी दिल में अमर हो के रह गएँ.
जब दिन आ गएँ शबाब के, ओढ़े कफ़न चल दिए.
होठों से छू के, हर गीत जो अमर कर दिए.
मुस्कुरा के गम छुपाने का, तरकीब सिखा गएँ.
सितारा जो सो गया, परेशान रात साड़ी है.
कुछ मीठी यादें और वोह दर्द भरी आवाज़, हमारे लिए छोर गएँ.
ना चिट्ठी ना कोई सन्देश, जाने कौन सा है वोह देश
बाबूल की नैहर चोर के, है कहाँ तुम चलें गएँ?
फिजां में बिखर गया, खुसबू की तरह बन के.
बदन बिना, चेहरा बिना, सिर्फ यादों में बसे रह गएँ!
शफक, धनुक, महताब घटाएं, तारे, नागने, बिजली, फूल.
हर चीज़ याद करेगा तुम्हे, तुम हमारी दिल में अमर हो के रह गएँ.
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