Aasman Mein Basa Aashiyana

चाँद सितारों के बीच बैठे,
इंसानों की ज़मीन से दूर हटके,
अगर होता हमारा एक आशियाना?

सवेरे का उगता, या फिर शाम की लालिमा लिए,
सूरज खिड़की से झांक, मुस्कुरा कर "हेल्लो" कहता.
हवाओं में वोह ठंडक होती.
जोह थकान को दूर भागती, पसीने को प्यार से पोचती.
शहर के कोलाहल, गन्दगी की बदबू से बहुत दूर,
ऊंचे आसमान में,
कितना सुन्दर होता हमारा यह आशियाना?

घर के अन्दर ही मानते आषाढ़, श्रावण,
जब बादल आकर dhak देता घर का आँगन.
तरसते नयन को मिला होता चैन,
जब दूर दूर तक दीखता हरियाली.

मगर शायद यह भगवान् को मंज़ूर न था.
आसमान की बोली लगाने में मैं पीछे रह गया.
अर्थ व्यवस्था की जानकारी थी मेरी बहुत ही कमजोर.
अफसोश, आसमान में आशियाने का हमारा ख्वाब,
सिर्फ एक ख्वाब बनकर ही रह गया.

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