Janamdin dost ka

 फेसबुक पर देखा था उस दिन 
एक दोस्त के जन्मदिन की सूचना।
याद आ गया तीस साल पहले के वोह दिन,
बचपन के दिन,
जब किसी दोस्त के जन्मदिन पे बहुत ख़ुश होते थे हम।
स्कूल में खाने को मिलते थे टोफ्फी ,
और शाम को एक तोहफा लिए पहुच जाते थे
दोस्त के घर।
आंटी जी के हाथ का बना
केक, मिठाई और पूरी-छोले खाना और दोस्तों से कुछ देर खेलने के बाद
जब घर वापस जाते थे
तो नन्हा सा मेरा दिल हो जाता था बाग़-बाग़।

आज दोस्त से बात करने की फुर्सत भी नहीं।
किसी तेज़ रफ़्तार से दौरती हुई रेल - गारी की तरह
मुझे सिर्फ भागना है, किसी के इशारे पे चलना है।
जो जाने पहचाने थे, वोह पीछे रह गए!
सुना है की आंटी जी की तबियत भी आजकल ठीक नहीं रहती।

दोस्त का  जन्मदिन
अब सिर्फ फसबूक पर ही मनता है!

 

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